चांपा के सोनी परिवार को 20 साल बाद मिला न्याय,देखरेख करने दी गई जमीन पर कब्जा करने का मामला…

जांजगीर चांपा 06 जुलाई 2023

चांपा के प्रतिष्ठित नागरिक बसंत कुमार सोनी के स्वयं की अपने मेहनत से कमाकर खरीदी भूमियों और उक्त मकान को उनके भाई होरीलाल उर्फ हुलासचंद सोनी और नीना बाई स्वर्णकार ने मौखिक एक पत्र के आधार पर संयुक्त परिवार की कमाई से खरीदी संपत्ति बताकर वर्ष 2002 से सिविल बाद दायर कर माननीय न्यायालय से उक्त सभी भूमियों के खरीदी बिक्री में रोक मांगी थी और सभी भूमियों एवं मकान में अपना हिस्सा मांगा था जिसपर नीना बाई स्वर्णकार और उसके पति बुधराम स्वर्णकार की दयनीय स्थिति को देखकर उसके परिवार को बसंत कुमार सोनी ने ही 40 साल पूर्व केवल देखरेख के लिए रहने को दिया था । लेकिन बसंत कुमार सोनी के मृत्यु उपरांत उसके भाई हुलास चंद उर्फ होरी लाल सोनी एवं नीना बाई स्वर्णकार की नियत खराब हो गई और उन्होंने बसंत कुमार सोनी के वारिशो वासुदेव सोनी, विष्णुकांत सोनी, गंगाराम सोनी, सरोजनी सोनी, गिरजा सोनी एवं जयगोपाल सोनी को उनके हक से बल एवम छल पूर्वक इतने सालो से दूर रखा l इसके अलावा बसंत कुमार सोनी के कई संपत्तियों को उनके दूसरे भाई रामहरि उर्फ योगेश्वर प्रसाद ने फर्जी वसीयत बनाकर बेच दिया है जिसके संबंध में भी बसंत कुमार सोनी के वारिश माननीय न्यायालय में न्याय की आश लगाए बैठे है और अपनी लड़ाई लड़ रहे है ।

यह मामला वर्ष 2002 से विचारण न्यायालय में चल रहा था । पहला निर्णय जनवरी वर्ष 2018 में बसंत कुमार सोनी एवं उनके वारिसो के पक्ष आया था जिसको नीना बाई में जिला एवं सत्र न्यायालय जांजगीर में चुनौती दी थी । जिसमे जिला एवं सत्र न्यायालय जांजगीर ने दिसंबर 2018 में पुनः होरी लाल उर्फ हुलास चंद सोनी, नीना बाई एवं अन्य के झूठे दावों को यह कहकर खारिज किया कि ” यह व्यवहार बाद इस तथ्य का सबसे अच्छा उदाहरण है कि अपीलार्थीनी नीना बाई एवं हुलासचंद ने हस्तगत व्यवहार वाद को बिना किसी दस्तावेज के आधार पर मात्र इस कारण कि वे स्व मानिकचंद के पुत्र एवं पुत्री है व्यवहार वाद को लगभग 16 वर्षो तक लंबित रखा l यदि माननीय उच्च न्यायालय द्वारा 5 एवं 10 वर्षो से अधिक समय से लंबित प्रकरणों के निराकरण हेतु निर्देश छत्तीसगढ़ के सभी विचारण न्यायालयो को नही देते तो संभवतः यह प्रकरण अभी भी निराकृत नही होता ।
जिला एवं सत्र न्यायालय ने विचारण न्यायालय द्वारा जारी निर्णय एवम आज्ञप्ति डिक्री की पुष्टि करते हुए नीना बाई को आदेशित किया कि दावे में प्रस्तुत वाद भूमि एवं मकान का रिक्त आधिपत्य बसंत कुमार सोनी एवं उनके वारिसों को निर्णय के तीन माह के भीतर सौप देवे।जिसके निस्पादन के लिए बसंत कुमार सोनी के वारिसो ने निर्णय के तीन महीने के भीतर ही जनवरी 2019 के आसपास निष्पादन हेतु प्रकरण में जरूरी आवेदन विचारण न्यायालय के समक्ष पेश किया था ।
लेकिन नीना बाई एवं उनके वारिस नरसिंह स्वर्णकार, नारायण स्वर्णकार, पीतांबर स्वर्णकार, लक्ष्मी स्वर्णकार एवं अन्य बहनों ने उक्त आदेश का पालन सुनिश्चित नही किया ।
यह कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने राहुल एस शाह के मामले में,एक निष्पादन कार्यवाही से उत्पन्न एक अपील पर विचार कर रहा था जो 14 वर्षों से लंबित थी। अपील को खारिज करते हुए, अदालत ने दिनांक 22 अप्रैल 2021 को कहा कि ये अपीलें डिक्री के निष्पादन की प्रक्रिया के दौरान हुई अत्यधिक देरी के कारण मुकदमेबाजी के फल का आनंद लेने में सक्षम नहीं होने के कारण डिक्री धारक की परेशानियों को चित्रित करती हैं।अदालत ने कहा कि निष्पादन के समय एक पुन: ट्रायल के समान कार्यवाही में लगातार वृद्धि हो रही है, जिसके कारण डिक्री और राहत के फल की प्राप्ति में विफलता हो रही है, जो पक्ष उनके पक्ष में एक डिक्री होने के बावजूद अदालतों से मांगता है।
पीठ ने हाईकोर्ट को एक वर्ष के भीतर भारत के संविधान के अनुच्छेद 227 और सीपीसी की धारा 122 के तहत अपनी शक्तियों के प्रयोग के तहत बनाए गए आदेशों के निष्पादन से संबंधित सभी नियमों पर पुनर्विचार और अपडेट करने का निर्देश दिया तथा तब तक 14 बिंदु निर्देशों का पालन करने का निर्देश सभी विचारण न्यायालयो को दिया l
उक्त निर्देश के बारहंवे एवम तेरहवे बिंदु पर निम्नलिखित निर्देश दिया था :
- निष्पादन न्यायालय को फाइलिंग की तारीख से छह महीने के भीतर निष्पादन की कार्यवाही का निपटारा करना चाहिए, जिसे इस तरह की देरी के लिए लिखित कारणों को दर्ज करके ही बढ़ाया जा सकता है।
- निष्पादन न्यायालय इस तथ्य से संतुष्ट होने पर कि पुलिस सहायता के बिना डिक्री को निष्पादित करना संभव नहीं है, संबंधित पुलिस स्टेशन को ऐसे अधिकारियों को पुलिस सहायता प्रदान करने का निर्देश दे सकता है जो डिक्री के निष्पादन की दिशा में काम कर रहे हैं। इसके अलावा, यदि लोक सेवक के खिलाफ अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए कोई अपराध न्यायालय के संज्ञान में लाया जाता है, तो उससे कानून के अनुसार सख्ती से निपटा जाना चाहिए।
जिसके परिपालन में माननीय छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने भी जिला एवं विचारण न्यायालयो को 15 जुलाई 2021 को सर्कुलर के माध्यम से निर्देश जारी किया था ।
इसके बावजूद भी बसंत कुमार सोनी के वारिसो के डिक्री का निष्पादन विचारण न्यायालय द्वारा नही किया जा सका ।
तब बसंत कुमार सोनी के वारीसो ने अपने वरिष्ठ अधिवक्ता श्री ओम प्रकाश देवांगन जी के मार्गदर्शन पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुपालन हेतु माननीय उच्च न्यायालय छत्तीसगढ़ के समक्ष याचिका मार्च 2023 में दायर की जिसमे माननीय उच्च न्यायालय ने विचारण न्यायालय व्यवहार न्यायालय चांपा को उक्त मामले को नियमानुसार माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा राहुल एस शाह विरुद्ध जितेंद्र गांधी के मामले में जारी निर्देश के प्रकाश में जल्दी से जल्दी आदेश की प्राप्ति के 6 महीने के भीतर निराकृत करे एवं विचारण न्यायालय विलंब का कोई कारण होने पर उसे रिकॉर्ड कर उक्त समयावधि को बढ़ा सकते है तथा विचारण न्यायालय को उक्त निष्पादन को समय सीमा में निष्पादित करने का पूरा प्रयास करना चाहिए ।
माननीय उच्च न्यायालय ने उक्त आदेश की प्रति जिला एवं सत्र न्यायालय जांजगीर को विचारण न्यायालय चांपा को भेजने तथा निष्पादन प्रकरणों का समय समय पर मॉनिटर करने का निर्देश दिया l
तब जाकर इस मामले में जनवरी 2018 जारी मकान एवं भूमि को रिक्त प्रदान करने संबंधी डिक्री का निष्पादन 5 जुलाई 2023 को उक्त मकान का कब्जा ताला तोड़कर दिलाया गया है एवं बसंत कुमार सोनी के वारिसो को उनकी कीमती भूमि एवं मकान का पूरा कब्जा 21 वर्ष बाद मिला है ।
जिससे स्पष्ट है कि वर्तमान में इस डिजीटल युग में भी सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का पालन भी विभिन्न व्यवहारिक, तकनीकी एवं मानवीय पहलुओं के कारण समय सीमा में नही हो पा रहा है और पीढ़ितो को उसका भी पालन कराने के लिए बार बार न्यायालय की शरण में जाने की जरूरत पड़ रही है जबकि इस तरह के जनहित से जुड़े मामले खासकर संविधान के अनुच्छेद 142 सहपठित अनुच्छेद 141 एवं 144 के शक्ति का प्रयोग करते हुए सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी निर्देशों का पालन बिना देरी के प्राथमिकता से होना चाहिए तथा पीड़ितो को पुनः उन्ही निर्देशों का अनुपालन के लिए न्यायालय के शरण में जाने की जरूरत नहीं पड़नी चाहिए ।